ये अनजान खवाहिशे , यह अनकही उमींदे
एक गहेरे पानी में बनी उस चाँद की परछाई की तरह नज़र आती हैं ,
जो एक छोटे से पत्ते के छूने से , पानी में लहरों के साथ खो जाती हैं ..
इनका अस्तित्व बस कुछ एक पल का छोटा सा होता है .
पर सोचो तो कुछ तो मिला होगा...
शायद पल भर की ज़िन्दगी और एक पल की पहचान!!
और फिर सबसे परे हो सबसे अनजान , कोने में छुप जाती हैं,
या कभी इतनी घबराई की दुनिया के सामने ही न आती है ..
ये अनजान खवाहिशे, यह अनकही उमींदे !!
कभी इनको , कोने से जगाया होता ...
या ऊपर चार दीवारों में बंद कर एक बड़ा सा ताला लगाया होता ..
न कोई एहसास रहता नो कोई आवाज़ आती ...
और चुप चाप अनजान, उनकाही अपने आप में समां जाती
ये महत्वहीन ,छोटी मोटी खवाहिशे , यह छोटी मोटी उमींदे ....
अस्मिता सिंह ०३.२६.२०१२
एक गहेरे पानी में बनी उस चाँद की परछाई की तरह नज़र आती हैं ,
जो एक छोटे से पत्ते के छूने से , पानी में लहरों के साथ खो जाती हैं ..
इनका अस्तित्व बस कुछ एक पल का छोटा सा होता है .
पर सोचो तो कुछ तो मिला होगा...
शायद पल भर की ज़िन्दगी और एक पल की पहचान!!
और फिर सबसे परे हो सबसे अनजान , कोने में छुप जाती हैं,
या कभी इतनी घबराई की दुनिया के सामने ही न आती है ..
ये अनजान खवाहिशे, यह अनकही उमींदे !!
कभी इनको , कोने से जगाया होता ...
या ऊपर चार दीवारों में बंद कर एक बड़ा सा ताला लगाया होता ..
न कोई एहसास रहता नो कोई आवाज़ आती ...
और चुप चाप अनजान, उनकाही अपने आप में समां जाती
ये महत्वहीन ,छोटी मोटी खवाहिशे , यह छोटी मोटी उमींदे ....
अस्मिता सिंह ०३.२६.२०१२